वेदव्यास के उद्धरण

जो शत्रु और मित्र के विषय में तथा मान और अपमान के विषय में सम है, सर्दी-गर्मी और सुख दुःखादि द्वंदों में सम है, आसक्ति से रहित है, जो निंदा और स्तुति को समान समझने वाला है, जो मौन धारण करता है, जो मिल जाए, उसी से संतुष्ट रहता है, जिसका अपना कोई स्थान नहीं है, जिसकी बुद्धि स्थिर है, ऐसा भक्त है, वह मुझे (परमात्मा को) प्रिय है।
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