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वेदव्यास के उद्धरण

जो अपने प्रतिकूल हो, उसे दूसरों के प्रति भी न करे—संक्षेप में यही धर्म है। इसके विपरीत जिसमें कामना से प्रवृत्ति होती है, वह तो अधर्म है।