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रवींद्रनाथ टैगोर के उद्धरण

व्यापक चेतना की प्राप्ति के लिए हमें अपने अंतर की चेतनता से, विश्व की असीम चेतना का समभाव स्थापित करना है।

अनुवाद : सत्यकाम विद्यालंकार