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वासुदेवशरण अग्रवाल के उद्धरण

जितना भी जीवन का ठाठ है; उसकी सृष्टि मनुष्य के मन, प्राण और शरीर के दीर्घकालीन प्रयत्नों के फलस्वरूप हुई है।