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वाल्मीकि के उद्धरण

जिस प्रकार शरीर के हित-अहित की प्रवर्त्तक आँख है, उसी प्रकार राष्ट्र में जो सत्य और धर्म हैं, उनका प्रवर्त्तक राजा है।