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वेदव्यास के उद्धरण

जब पुरुष प्राणियों की पृथक-पृथक सत्ता को एकमात्र परमात्मा में ही स्थित देखता है और उस परमात्मा से ही संपूर्ण भूतों का विस्तार हुआ मानता है, उस समय वह सच्चिदानन्दघन ब्रह्म को प्राप्त होता है।