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आचार्य रामचंद्र शुक्ल के उद्धरण

इस विश्व काव्य की रसधारा में जो थोड़ी देर के लिए निमग्न न हुआ, उसके जीवन को मरुस्थल की यात्रा समझना चाहिए।