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श्रीलाल शुक्ल के उद्धरण

हम व्यंग्य को विरूपता, कटूक्ति विडंबना, जुगुप्सा आदि से जोड़ने के आदी हैं, पर शरद जोशी में ये गुण लगभग थे ही नहीं, तभी उनका व्यंग्य बड़ा आनंदकर, एक तरह से निरामिष व्यंग्य है।