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महात्मा गांधी के उद्धरण

हे प्रभो! तुम्हारे नाम को ही स्मरण करके मैं सारे कामों को आरंभ करता हूँ। तुम दया के सागर हो। तुम कृपामय हो, तुम अखिल विश्व के स्रष्टा हो, तुम ही मालिक हो। मैं तुम्हारी ही मदद माँगता हूँ। आख़िरी न्याय देने वाले तुम्हीं हो। तुम मुझे सीधा रास्ता दिखाओ; उन्हीं का चलने का रास्ता दिखाओ जो तुम्हारी कृपादृष्टि पाने के क़ाबिल हो गए हैं; जो तुम्हारी अप्रसन्नता के योग्य ठहरे, जो ग़लत रास्ते से चले हैं—उनका रास्ता मुझे मत दिखाओ।