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ज्याँ-पाॅल सार्त्र के उद्धरण

हमारे जीवन की रेतघड़ी से जितनी रेत बाहर फ़िसल चुकी है, उतना ही स्पष्ट हमें इस रेतघड़ी के आर पार दिखना चाहिए।

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