हमारा अर्थ और काम (उपभोग) धर्म के द्वारा संयमित-नियंत्रित होता है। धर्म-रहित अर्थ और धर्म-रहित उपभोग (काम) महान अनर्थ करके मनुष्य का विनाश कर देते है। केवल 'अर्थ' और 'काम' से युक्त जीवन तो पशु-जीवन है। हिन्दू संस्कृति में अर्थ व काम का त्याग नहीं है। उनकी भी उपादेयता है, पर वे होने चाहिए धर्म के आश्रित और उनका लक्ष्य हो मोक्ष।