बंकिम चंद्र चटर्जी के उद्धरण

गंगा प्रेम-प्रवाह स्वरूपिणी है। यही प्रेम-गंगा जगदीश्वर के चरण कमल से निकली है। यह जगत में पतितपावनी—ऊँच-नीच, पुण्यात्मा-पापी, सभी को पवित्र करने वाली—है।
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