मंगलेश डबराल के उद्धरण

एक प्रसिद्ध उक्ति है कि ‘अच्छे साहित्य’ का निर्धारण आलोचक करते हैं, लेकिन ‘महान साहित्य’ वही हो पाता है जिसे समाज स्वीकृत करता है।
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