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रवींद्रनाथ टैगोर के उद्धरण

दुःख उठाते हुए भी हम यह जानते हैं कि जगत् के स्थायित्व में दुःख का महत्त्व नहीं है।

अनुवाद : सत्यकाम विद्यालंकार