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राधावल्लभ त्रिपाठी के उद्धरण

धर्मशास्त्र में तीन ऋण बताए गए : देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण, पर मातृऋण भी हो सकता है—इस पर कहीं कोई विचार धर्मशास्त्रकारों ने नहीं किया।