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जे. कृष्णमूर्ति के उद्धरण

धार्मिक मन अपना आलोक स्वयं है। इसकी ज्योति दूसरे द्वारा प्रज्वलित नहीं है—दूसरों द्वारा प्रज्वलित ज्योंति बहुत जल्दी बुझ सकती है।

अनुवाद : हरीश