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जे. कृष्णमूर्ति के उद्धरण

देखने और सुनने की क्रिया ही सावधानी है; इसकी आपको साधना नहीं करनी है, यदि आप साधना करते हैं तो आप तत्काल असावधानी की अवस्था में आ जाते है।