सुमित्रानंदन पंत के उद्धरण

छंद भी अपने नियंत्रण से राग को स्पंदन, कंपन तथा वेग प्रदान कर, निर्जीव शब्दों के रोड़ों में एक कोमल, सजल कलरव भर उन्हें सजीव बना देते हैं।
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