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रवींद्रनाथ टैगोर के उद्धरण

चरित्र जिस शक्ति से प्राण को विस्तृत करता है, उसी को कहते हैं निष्ठा। वह अश्रुपूर्ण भाव का आवेग नहीं है। वह विचलित नहीं होती; जहाँ प्रतिष्ठित है वहीं डटी रहती है, गहराइयों में नीचे उतरती जाती है। शुद्ध चारिणी, स्नात, पवित्र सेविका की तरह वह सबसे नीचे, हाथ जोड़कर, भगवान के पाँव के पास खड़ी रहती है।

अनुवाद : विश्वनाथ नरवणे