राजेंद्र माथुर के उद्धरण
भारत की समाजेंद्रिय शायद इतनी अधिक विकसित हो चुकी थी कि राज्येंद्रिय को विकसित करने की यहाँ के लोगों को कभी ज़रूरत ही महसूस नहीं हुई।
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