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आचार्य रामचंद्र शुक्ल के उद्धरण

अव्यक्त निर्गुण, निर्विशेष ब्रह्म उपासना के व्यवहार में सगुण ईश्वर हो जाता है। इसका तात्पर्य यह है कि उपासना जब होगी, तब व्यक्त और सगुण की ही होगी, अव्यक्त और निर्गुण की नहीं।