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चाणक्य के उद्धरण

अस्थिर चित्त वाला मनुष्य न मनुष्यों में सुखी होता है और न वन में। मनुष्यों के बीच उनका संसर्ग पीड़ित करता है और वन में संसर्ग का अभाव।