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राजेंद्र माथुर के उद्धरण

आर्यों के ज़माने में भारत स्वयं एक महाकाव्य था, जबकि आज जो हिंदुस्तान हम देखते हैं वह उस महाकाव्य का सड़-बुसा, फफूंद लगा संस्करण है।