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जे. कृष्णमूर्ति के उद्धरण

आप सावधान हैं और आप पाते हैं कि आपका मन भटककर दूर जा रहा है, तो इसे भटकने दीजिए, किंतु आप जानिए कि मन असावधान हैं। इस असावधानी के प्रति यह सजगता ही सावधानी है। मन की इस असावधान दशा के साथ लड़िए मत, इस पर जबरदस्ती करने के लिए यह मत कहिए कि मैं सावधान होकर ही रहूँगा. यह तो बचकानी बात होगी.