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शंकुक

शंकुक की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 1

जिस प्रकार बिना प्राण का शरीर काठ के समान लगता है, उसी प्रकार मैं असाधारण चेष्टाओं और कर्त्तव्यों से शून्य जीवन को भी मानता हूँ।

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