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नई पीढ़ी के कवि-कहानीकार और शोधार्थी। तीन कविता-संग्रह प्रकाशित।

नई पीढ़ी के कवि-कहानीकार और शोधार्थी। तीन कविता-संग्रह प्रकाशित।

राकेश कबीर का परिचय

राकेश कबीर (डॉ. राकेश कुमार पटेल) युवा कवि और कहानीकार हैं। उनकी कविताएँ, लेख और कहानियाँ हिंदी और अँग्रेज़ी की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित और चर्चित होती रही हैं। उनकी कविताओं में नदियाँ और पर्यावरण सबसे महत्त्वपूर्ण चिंता और सरोकार हैं। कविताओं में सामाजिक अन्याय, रूढ़िवाद और पाखंडों का जहाँ तीव्र विरोध मिलता है, वहीं श्रमजीवी समाजों के संघर्षो के प्रति गहरा राग और विश्वास पाया जाता है। ऐसे ही आकार में छोटी उनकी कहानियाँ जो अपनी सहज अभिव्यक्ति के कारण अलग ही आस्वाद पैदा करती हैं। इन सहज-कथाओं के इतने असली कथानक होते हैं, गोया ज़िंदगी के एक हिस्से को उन्होंने उठाकर रख दिया हो। उनके पास मन को छूने वाली एक भाषा है और उनके पात्र प्रायः ‘मालगुडी डेज़’ के देसज पात्रों की तरह धरती से जुड़े होते हैं। राकेश का जन्म 15 जनवरी, 1982 को महाराजगंज ज़िले के लक्ष्मीपुर एकडंगा गाँव के एक संघर्षशील किसान के घर हुआ। गोरखपुर विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त करने के बाद वह जवाहरलाल नेहरू विश्विद्यालय चले गए, जहाँ से उन्होंने ‘भारतीय सिनेमा में प्रवासी भारतीयों का चित्रण’ विषय पर एम.फिल और ‘ग्रामीण सामाजिक संरचना में निरंतरता एवं परिवर्तन’ विषय पर पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। सिनेमा, इतिहास, समाज और संस्कृति के विभिन्न आयामों पर गहरी दिलचस्पी रखने वाले राकेश कबीर की प्रकाशित कृतियों में ‘नदियाँ बहती रहेंगी’, ‘नदियाँ ही राह बताएँगी’, ‘कुँवरवर्ती कैसे बहे’ (कविता) और ‘बिवाई तथा अन्य सहज-कथाएँ’ (लघु कहानी संग्रह) ‘सिनेमा को पढ़ते हुए’ हैं। पुरवइया अक्षर सम्मान 2020 से सम्मानित। फ़िलहाल उत्तर प्रदेश प्रशासनिक सेवा में।

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