महावीर प्रसाद द्विवेदी का आलोचनात्मक लेखन
कवियों की उर्मिला विषयक उदासीनता
कवि स्वभाव से ही उच्छृंखल होते हैं। वे जिस तरफ़ झुक गए, झुक गए। जी में आया तो राई का पर्वत कर दिया; जी में आया तो हिमालय की तरफ़ भी आँख उठाकर न देखा। यह उच्छृंखलता या उदासीनता सर्व साधारण कवियों में तो देखी ही जाती है, आदि कवि तक इससे नहीं बचे। क्रौंच
'बिहारी सतसई' के पहले दोहे की टीका
उस दिन कानपुर के एक छापेख़ाने में बिहारी की सतसई का एक नया संस्करण देखने को दिला। यह संस्करण हिंदी साहित्य में प्रावीण्य या प्राप्त करने के इच्छुक छात्रों के उपकार के लिए सटीक प्रकाशित हुआ है। इसमें पहले दोहे के अर्थ की असुंदरता देखकर दुःख हुआ था? क्योंकि
मतिराम ग्रंथावली
संपादक—कृष्ण बिहारी मिश्र बी० ए०, एल-एल० बी०, प्रकाशक—गंगा पुस्तक माना कार्यालय, लखनऊ। पृष्ठ संख्या-264 + 244; मूल्य—सजिल्द 3 रु०, अजिल्द 20 यह ढाई रुपए मूल्यवाली 'अजिल्द' ग्रंथावली मेरे पास 'समालोचनार्थ' भेजी गई है। परंतु मैं कवि मतिराम की कविता
 
                        