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गोस्वामी विट्ठलनाथ

गोस्वामी विट्ठलनाथ की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 1

हे प्रभु! आप चाहे संतुष्ट हों या रुष्ट, मेरे तो आश्रय आप ही हैं। हम दोनों को मारने या स्वीकार करने में आप ही हमारी गति हैं।

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