प्रकृति-सौंदर्य
हरिणचरणक्षुण्णोपांता सशाद्वलनिर्झराः,
कुसुमकलितैर्विष्वग्वातैस्तरंगितपादपाः॥
विविधविहगश्रेणीचित्रस्वनप्रतिनादिता,
मनसि न मुद दध्यु. केपां शिवा वनभूमयः॥
—सुभाषित।
भावार्थ—जहाँ हरी-हरी दूब का गलीचा सा बिछा है, जिस पर हिरनों के खुरों के चिह्न चिह्नित