सरस्वती वंदना
रीझी देत रसाल रंग रस में सुररानी।
गुनवंती गय गमनि बाग देवी ब्रह्माणी॥
निशिपति मुख मृग नयनि कांति कोटिक दिनकर कर।
सचराचर संचरनि अगम आगम अपरंपर॥
भय हरनि भगत जन भगवती बचन सुधारस बरसती।
राजेश राण गुण संवरत सुप्रसन्न हौ सरस्वती॥
सुप्रसन्न सरसुति मात सुमिरत कोटि मंगल कारनी।
भारती सुभर भँडार भरनी बिकट संकट वारनी॥
देवी अबोधहिं बोध दायक सुमति श्रुत संचारनी।
अद्भुत अनूप मराल आसनि जयति जय जगतारनी॥
आई निरंतर हसित आननि महि सुमाननि मोहनी।
संकरी सकल सिंगार सज्जित रुद्र रिपुदल रोहनी॥
वपु कनक कांति कुमारि त्रिविधा अजर तूं ही जारनी
अद्भुत अनूप मराल आसनि जयति जय जगतारनी॥
पयतल प्रबाल किलालं पल्लव दुति महावर दीपए।
अंगुली नख दह विमल उज्जल जोति तारत जीपए॥
अनवट अनोपंम बीछिया अति धुनि मनोहर धारनी।
अद्भुत अनूप मराल आसनि जयति जय जगतारनी॥
झमकंति झंझरि नाद रुण झुण पाय पायल पहिरना।
कमनीय क्षुद्रावली किंकिनि अवर पय आभूषना॥
कलधौत कूरम समय मन क्रम पाप पीड़ प्रहारनी।
अद्भुत अनूप मराल आसनि जयति जय जगतारनी॥
कदली सुखंभ अधो कि करि कर जंघ जुग बर जानिये।
शुचि शुभग सार नितंब प्रस्थल बाघ कटि बाषानिये॥
वापिका नाभि गँभीर सुवणित महा रिपु दल मारनी।
अद्भुत अनूप मराल आसनि जयति जय जगतारनी॥
चरनालि कटि तट लाल चरना पवर अरु पट कूलयं।
मेषला कंचन रतन मंडित देव दूष दुकूलयं॥
दीपती दुति जनु भानु द्वादस अघ तिमर अपहारनी।
अद्भुत अनूप मराल आसनि जयति जय जगतारनी॥
तिमि तुल्ल कुखिंस मध्य तिवलिय उरज उभय अनोपमां।
किधो नालिकेर कि कनक कुंभ सुकुंभि कुंभ मुऊपमा॥
कुंचुकी जरकस कसिय कोमल आदि अमिय अहारनी।
अद्भुत अनूपं मराल आसनि जयति जय जगतारनी॥
करसाष कमनिय रूप कोमल मुद्रिका बर मंडनं।
उपमान मूंगफली सु उत्तम अरुन नखर अखंडनं॥
पुस्तकरु वीन सुपानि पल्लव वेदराग बिथारनी।
अद्भुत अनूपं मराल आसनि जयति जय जगतारनी॥
कहियै निगेदर हार कंठहि भुत्ति भाल मनोहरं।
मखतूल गुन चौकी कनक मनि चारु चंपकली उरं॥
तपनीय हंसरु पोति तिलरी कंठश्री सुख कारनी।
अद्भुत अनूपं मराल आसनि जयति जय जगतारनी॥
बिधु सकल कल संजुत्त बदनी चिबुक गाड़ सु-चाहियै।
बिद्रुम कि बधूजीव वर्णों सहज अधर सराहियै॥
दुत्ति दरुन बीज सुपक्व दारिम भेष जन मन हारनी।
अद्भुत अनूपं मराल आसनि जयति जय जगतारनी॥
रसना सुरंती श्रवंति नव रस तालु मृदु तर तासयं।
सतपत्र समान सुरभित अधिक बदन उसासयं॥
कलकंठ बचन विलास कुहकति अगम निगम उछारनी।
अद्भुत अनूपं मराल आसनि जयति जय जगतारनी॥
शुकराय चंचु कि भुवनमनिशिष नासिका बर निरखियै।
कलधौत नथ मधि लाल मुत्तिय ऊपमा आकरषियै॥
मनु राज दर गुरू शुक्र मंगल सोह बर संभारनी।
अद्भुत अनूपं मराल आसनि जयति जय जगतारनी॥
अरबिंद पुष्प कि मीन अक्षसु प्रचल षंजन पेखियं।
सारंग शिशु दृग सरिस सुंदर रेह अंजन रेखियं॥
संभृत जुग जनु सुधा संपुट विशव सकल विहारनी।
अद्भुत अनूपं मराल आसनि जयति जय जगतारनी॥
मनु कारक संपुट सुघट मंजुत पिशित पुष्ट कपोल दो।
दीपंत श्रुत जनु दोइ रवि ससि लंसत कुंडल लोल दो॥
इन हेत अति उद्योत आनन विघन सघन विडारनी।
अद्भुत अनूपं मराल आसनि जयति जय जगतारनी॥
कोदंड आकृति भृकुटि कुटिलिति मानु भमहिं सुमधुकरं।
लहि कमल कुसुम सुवास लोयन स्वैर संठिय वपु सरं॥
किं अवर उपमा कहय लघु कवि शत्रु जय संहारनी।
अद्भुत अनूपं मराल आसनि जयति जय जगतारनी॥
सुविशाल भाल कि अष्टमी ससि चरचि केसरि चंदना।
बिंदुली लाल सिंदूर भुवसित वर्ण पुष्प सुवंदना॥
अनि तिलक जटित जराउ ऊपित सकल काम सुधारनी।
अद्भुत अनूपं मराल आसनि जयति जय जगतारनी॥
शिर भाल संधि सुसीसफूलह महसकिरन सभानयं।
राखडी निरखत चित्त रंजति वेणि व्याल बयानयं॥
मोतिन सुभांग जवादि मंडित अधम लोक उधारनी।
अद्भुत अनूपं मराल आसनिजयतिजयजगतारनी॥
अंशुक कि इंदु मयूख उज्जल झीन अति दुति झलझलं।
सुरवहिं निर्म्मित सरस सुर नित परम पावन पेसलं॥
मन रंग ऊढ़ति महामाई विपति कद विदारनी।
अद्भुत अनूपं मराल आसनि जयति जय जगतारनी॥
चंबेलि जूही जाइ चंपक कुंद करणी केवरा।
मचकुंद मालति दवन मुग्गर चारु कंठहिं चौसरा॥
तंबोल मुख महकंत त्रिपुरा ब्रह्मरूप विचारनी।
अद्भुत अनूपं मराल आसनि जयति जय जगतारनी॥
अज अजर अभर अपार अवगत अग अखंड अनंतयं।
ईश्वरी आदि अनादि अव्यय अति अनोप अचिंतयं॥
कर जोरि कहि कवि मान किंकर अरजतं अवधारनी।
अद्भुत अनूपं मराल आसनि जयति जय जगतारनी॥
- पुस्तक : राजविलास (पृष्ठ 2)
- संपादक : भगवानदीन
- रचनाकार : मान कवि
- प्रकाशन : नागरीप्रचारिणी सभा, काशी
- संस्करण : 1912
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