इतना भी आसान कहाँ है

itna bhi asan kahan hai

जगदीश व्योम

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इतना भी आसान कहाँ है

जगदीश व्योम

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    इतना भी

    आसान कहाँ है

    पानी को पानी कह पाना!

    कुछ सनकी

    बस बैठे-ठाले

    सच के पीछे पड़ जाते हैं

    भले रहें गर्दिश में

    लेकिन अपनी

    ज़िद पर अड़ जाते हैं

    युग की इस उद्दंड नदी में

    सहज नहीं

    उल्टा बह पाना

    इतना भी...

    यूँ तो सच के

    बहुत मुखौटे

    क़दम-क़दम पर

    दिख जाते हैं

    जो कि इंच भर

    सुख की ख़ातिर

    फुटपाथों पर

    बिक जाते हैं

    सोचो!

    इनके साथ सत्य का

    कितना मुश्किल है रह पाना!

    इतना भी...

    जिनके श्रम से

    चहल-पहल है

    फैली है चेहरों पर लाली

    वे शिव हैं

    अभिशप्त समय के

    लिए कुंडली में कंगाली

    जिस पल शिव,

    शंकर में बदले

    मुश्किल है

    ताँडव सह पाना

    इतना भी...

    स्रोत :
    • पुस्तक : इतना भी आसान कहाँ है : गीत-नवगीत (पृष्ठ 40)
    • रचनाकार : जगदीश व्योम
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 2023

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