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रे भौंरा रसबावरे

re bhaunra rasbawre

अक्षर अनन्य

अन्य

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अक्षर अनन्य

रे भौंरा रसबावरे

अक्षर अनन्य

और अधिकअक्षर अनन्य

    रे भौंरा रसबावरे, मनभावन के दूत।

    हमरे सनमुख विमुख अब, तू नहिं आवहु धूत॥

    तू नहिं आवहु धूत, तोहि देखत रुचि बाढ़ी।

    जदुकुलतिय कुच चूमि, भई कुमकुम तुव डाढ़ी॥

    तोहि छिपत कहि अछिर, लगत हमरे जिय दवरा।

    उनकौजोग संदेस, सौंप उनहीं कहँ भँवरा॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्रेमदीपिका, महात्मा अक्षरअनन्य कृत (पृष्ठ 15)
    • संपादक : राय बहादुर लाला सिताराम
    • रचनाकार : अक्षर अनन्य
    • प्रकाशन : हिंदुस्तानी एकेडेमी, यू.पी
    • संस्करण : 1878

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