काव्य खंड

पाठकों की सुविधार्थ हिंदवी द्वारा प्रतिपादित खंडकाव्य से इतर काव्यविधा की एक श्रेणी। खंडकाव्य एक सर्गबद्ध कथा-निरूपण है, जबकि काव्यखंड काव्य या महाकाव्य के किसी एक प्रसंग का चुना हुआ अंश।

1200

अपभ्रंश के महत्त्वपूर्ण कवि। अन्य नाम ‘अद्दहमाण’। समय : 11-12वीं सदी। ‘संदेश रासक’ कीर्ति का आधार-ग्रंथ।

साहित्य की प्रेमाख्यान परंपरा के कवि। लोक कंठ में व्याप्त 'ढोला-मारू रा दूहा' प्रसिद्धि का आधार ग्रंथ।

1555 -1617

भक्तिकाल और रीतिकाल के संधि कवि। काव्यांग निरूपण, उक्ति-वैचित्र्य और अलंकारप्रियता के लिए स्मरणीय। काव्य- संसार में ‘कठिन काव्य के प्रेत’ के रूप में प्रसिद्ध।

1668 -1752

रीतिकालीन कवि। वीरकाव्य के रचयिता।

जैन कवि। काव्य में विरह के करुण आवेगों का सरस वर्णन।

1866 -1932

ब्रजभाषा के आधुनिक कवि। मर्यादित शृंगार के लिए ख्यात। उद्धव शतक कीर्ति का आधार ग्रंथ। 'जकी' उपनाम से उर्दू में भी शायरी की।

1889 -1937

छायावादी दौर के चार स्तंभों में से एक। समादृत कवि-कथाकार और नाटककार।

रासो काव्य परंपरा के अंतिम कवियों में से एक। प्रबंध काव्य 'हम्मीर रासो' से प्रसिद्ध।

1511 -1623

रामभक्ति शाखा के महत्त्वपूर्ण कवि। कीर्ति का आधार-ग्रंथ ‘रामचरितमानस’। उत्तर भारत के मानस को सर्वाधिक प्रभावित करने वाले भक्त कवि।

पुष्टिमार्गीय वल्लभ संप्रदाय के अष्टछाप कवियों में से एक। गोस्वामी विट्ठलदास के शिष्य। पदों के शिल्प-वैशिष्ट्य के कारण प्रसिद्ध।

प्रेमाख्यान परंपरा के अंतिम कवि।

सूफ़ी कवि। राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा का प्रयोग।

सरस कल्पना के भावुक कवि। स्वभाविक, चलती हुई व्यंजनापूर्ण भाषा के लिए स्मरणीय।

1886 -1964

राष्ट्रकवि के रूप में समादृत कवि। ‘भारत भारती’ उल्लेखनीय काव्य-कृति।

1000

1000 ई. के आस-पास राजस्थान में हुए विशुद्ध रहस्यवादी जैन कवि। भारतीय अध्यात्म में भावात्मक अभिव्यंजना की अभिव्यक्ति के लिए उल्लेखनीय।

1629 -1680

मेवाड़ नरेश राजसिंह के दरबारी कवि। सामान्य विषय-वस्तु के विस्तृत वर्णन में सिद्धहस्त।

समय : अज्ञात। चंपू-काव्य और नख-शिख वर्णन की शृंगार-काव्य-परंपरा के प्राचीनतम कवि।

1658 -1710

छत्रसाल के दरबारी कवि। प्रबंधपटुता, संबंध-निर्वाह और मार्मिक स्थलों के चुनाव में दक्ष। 'छत्रप्रकाश' कीर्ति का आधार ग्रंथ।

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