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तारा उडराय सब, मेघनि लुकाय गयें

taara uDraay sab, meghani lukaay gaye.n

गिरिधर पुरोहित

अन्य

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गिरिधर पुरोहित

तारा उडराय सब, मेघनि लुकाय गयें

गिरिधर पुरोहित

और अधिकगिरिधर पुरोहित

    तारा उडराय सब, मेघनि लुकाय गयें,

    अंगु तहां दीठ स्याम ताइयै परति है।

    ओढ़ि नील अंबर अकेली वृषभान सुता,

    प्यारी गिरिधारी कुंज-गेह कौं सरति है।

    अंगु की जुन्हाई से तौ, भौंरनि के भीर छाई,

    दांतनि की ज्योति सो प्रगटि करति है।

    हाथ सौं गही आई, तासौं धौं कहा बसाइ,

    दामिनी की दमक तें षरीयै डरति है॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : शृंगारमंजरी (पृष्ठ 78)
    • रचनाकार : गिरिधर पुरोहित
    • प्रकाशन : लोकभारती प्रकाशन
    • संस्करण : 1982

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