Font by Mehr Nastaliq Web

श्री राम-विनय

shri ram winay

जगन्नाथदास रत्नाकर

अन्य

अन्य

जगन्नाथदास रत्नाकर

श्री राम-विनय

जगन्नाथदास रत्नाकर

और अधिकजगन्नाथदास रत्नाकर

    पाइ बर गोपी ग्वाल ह्वै कै संग खेलन कौ,

    आनँद सकेलन कौ मौज मन भाई मैं।

    कहै रतनाकर मुनीस बन दंडक के,

    मगन उमंग की तरंग सुखदाई मैं॥

    भूलि-भूलि देस-काल-ज्ञान गुन-मान सब,

    पूछत परसपर सरस अतुराई मैं।

    ब्रज की जवाई मैं कितेक बेर लागै कहौ,

    कैक दिन और अहो द्वापर अवाई मैं॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : रत्नाकर रचनावली (पृष्ठ 477)
    • संपादक : कमलाशंकर त्रिपाठी
    • रचनाकार : जगन्नाथदास रत्नाकर
    • प्रकाशन : उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ
    • संस्करण : 2009

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY