युद्ध

yudh

ब्रजनाथ रथ

और अधिकब्रजनाथ रथ

    हानि-लाभ का हिसाब कौन करे?

    कौन विचार करेगा

    किसका है जय अथवा पराजय?

    जहाँ

    टैंकों से कर्षिता धरती—

    बोए जाते हैं बारुद के बीज,

    सींचा जाता है आँसू और ख़ून का पानी,

    वहाँ उगती है बस...

    दीर्घश्र्वास और हाहाकार की फसल।

    जहाँ—

    कुछ धर्मांध और सत्ता के मतवाले

    अंहकार भरे आस्फालन से...

    प्रशांत क्षितिज को

    पलभर में बना डालते हैं लाल;

    सिर्फ़ वहीं

    बलात्कारित होती धरती, चिरकाल!

    समझ नहीं आता—

    निरर्थक ज़िद का मतलब।

    क्या यह निर्लज पौरुष का आस्फालन,

    या फिर निरीह अनगिनतों का निर्मम निधन!

    एक ही मुद्रा के

    दोनों ही ओर दो चेहरे—

    वीभत्स छाप।

    तुम तो ‘व्हाइट हाउस’ के

    सुरक्षित महल में रहते हो,

    या ‘तोराबोरा’ के

    प्रकंपित पहाड़ी गुफा में,

    इसलिए—

    तुम्हारा आता जाता भला क्या है?

    तुमने तो गले तक पी ली—

    सांप्रदायिक दारु,

    और सत्ता का शैम्पेन;

    और सेवन कर चुके

    अंधे अंहकार का अहिफेन!

    तुम नहीं समझ सकते

    बिन माँ के

    अबोध बच्चे का दु:ख;

    और बच्चे की...

    हारी माँ की आकुल वेदना।

    तुम्हारी मदहोश आँखों में—

    बसी है प्रतिशोध की सूरमा

    और प्रतिहिंसा की लाली।

    क्या समझोगे तुम भला जीवन का मतलब?

    तुम तो बस खींचते रहते हो,

    जीवन के रंगीन क्षितिज में—

    मौत की अनंत द्राघिमा।

    किसका जय

    अथवा किसका पराजय,

    उसका हिसाब नहीं रखता मज़दूर—

    खेतिहर या कारख़ाने का।

    उसके लिए तो—

    युद्ध का मतलब ही है

    केवल सर्वनाशी युद्ध,

    जहाँ जीने की सारी आशा शून्य—

    और अवरुद्ध हैं

    जीने के दसों द्वार!

    स्रोत :
    • पुस्तक : समकालीन ओड़िया कविता (पृष्ठ 13)
    • रचनाकार : ब्रजनाथ रथ
    • प्रकाशन : भारतीय साहित्य केंद्र
    • संस्करण : 2013

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