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यातना शिविर से बच निकली

yatana shivir se bach nikli

अनुवाद : यादवेंद्र

एलीसिया पार्तनॉय

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एलीसिया पार्तनॉय

यातना शिविर से बच निकली

एलीसिया पार्तनॉय

और अधिकएलीसिया पार्तनॉय

    मैं अपना ग़ुस्सा साथ लेकर चलती हूँ

    गठरी-सा सीने से चिपकाए

    वह एक मरी हुई मछली की तरह लुंज-पुंज है

    और बदबू बिखरेता रहता है

    कभी-कभार उससे फुसफुसाकर बातें भी कर लेती हूँ

    राह चलते लोग मुझे देख दूर छिटक लेते हैं

    मुझे मालूम नहीं : मौत की दुर्गंध के चलते

    वे मुझसे दूर भाग खड़े होते हैं

    या कि मेरे बदन की गर्मजोशी से डरते हैं...

    कहीं मेरा ग़ुस्सा एक बार फिर से

    सोए पड़े जीवन को सुलगा दे!

    स्रोत :
    • पुस्तक : सदानीरा पत्रिका
    • संपादक : अविनाश मिश्र
    • रचनाकार : एलीसिया पार्तनॉय

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