इंटरप्रेटर
वे लड़खड़ाते हैं जब वक्ता प्रवाह में होते हैं
मैं प्रवाह में नहीं हूँ उनमें से एक हूँ लड़खड़ाते हुए
मेरे कार्य को क़तई सरल करती हुईं
वे स्थितियाँ बड़ी आकर्षक होती हैं
जहाँ वे शब्दहीन होते हैं
मैं बस यहीं, बस यहीं बस जाना चाहता हूँ
वे चाहते हैं कि मैं हँसी, ख़ुशी और खीझ को भी इंटरप्रेट करूँ
‘यह कार्य बहुत जटिल है’ वे लगभग विलाप करते हैं
और मुझे आँखों में आँसू लाने पड़ते हैं
सब शब्द एक भाषा में नहीं होते
वे यह क्यों नहीं समझते
जैसाकि शास्त्रों में वर्णित है :
सृष्टि के आरंभ में केवल शब्द था
एक अक्षुण्ण पवित्रता के साथ
वह ईश्वरीय अनुकंपा से उत्पन्न हुआ था
यह बीस अरब वर्ष या उससे भी कहीं अधिक प्राचीन तथ्य है
लेकिन वह कोई एक शब्द था या कोई शब्द समुच्चय
यह अब तक संशय का विषय है
शब्द संवाद का आवश्यक तत्त्व
और संवाद अब भी एकमात्र विकल्प
युद्ध और हत्या बहुत बाद के शब्द हैं
बर्बरों के शब्दकोश में सर्वप्रथम होते हुए भी
लेकिन यहाँ तक आते-आते
शब्द एक प्रश्नचिह्न, एक अपर्याप्त व सामर्थ्यवंचित सत्ता
और एक चुप एक शब्द समुच्चय से कहीं अधिक अर्थवान्
इस पथभ्रष्ट परिदृश्य में
यहाँ आकर उस विनम्रता का भी उल्लेख आवश्यक है
जो प्रायः निःशब्द होती है
और धीरे-धीरे भाषा में विस्तार पाती है
भाषा की परिभाषा मैं क्या जानूँ
मैं बस भाषाएँ जानता हूँ
लेकिन भाषा सब कुछ नहीं है
वे यह क्यों नहीं समझते
यू.एन. से यू.एस. से यू.के. तक
सार्क सम्मेलनों और ग्रुप-8 की बैठकों
और तमाम राजनयिक और सामयिक विमर्शों में
वही संसार और बाज़ार को अस्थिरता से बचाने की क़वायदें
और रोज़-ब-रोज़ प्रकट होते हुए नए-नए संकट
मैं वक्ता को ठीक-ठीक व्यक्त कर पा रहा हूँ या नहीं
यह मैं स्वयं भी नहीं जानता
इस प्रवाहमय भाषा का अनुवाद मेरी भाषा नहीं
बस मेरी लड़खड़ाहटें ही कर पाती हैं
- रचनाकार : अविनाश मिश्र
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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