वह सिर के माध्यम से ऊपर उठता है
wo sir ke madhyam se uupar uthta hai
वह जो समझता है और ऊपर उठता है। सीधे ऊपर।
अपनी सबसे महीन तहों में से एक में।
जब कायाओं का लोप हो चुका हो।
वह जो भीतर उदित होता है।
जब तुम किसी को देखते हो जो वास्तव में दे नहीं सकता।
जो विश्वास न करता हो। देता हो शवों को अन्न का उपहार।
या फिर यदि काया अपनी पूरी धज में हो।
विकृत जब वह हो चुकी हो विकृत।
स्वयं घृणा द्वारा नष्ट की जा चुकी।
तब इसमें इसका कुछ भी नहीं रहता शेष।
जो साथ रह सकता है वह आएगा।
अपने रूप में अपरिवर्तित।
जो बन जाता है सिर की आँखों के पीछे का अंतस।
शायद फिर से हमेशा के लिए।
- पुस्तक : सदानीरा पत्रिका
- संपादक : अविनाश मिश्र
- रचनाकार : आन येदरलुंड
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