रजाई

rajai

मेरी झोपड़ी के पड़ोस में

नीम का यह पेड़

दादा के बचपन से पोते के बुढ़ापे तक का

फ़ासला तय कर चुका है

नंग-धड़ंग गवाह है यह

मेरी कई पुश्त कट गई

रजाई के अभाव में

ऐसे में याद आते हैं पिता

पिता को दादा द्वारा

दिए गए संदेश

पिता कहते थे

ठंड के नाख़ून बड़े तेज़ होते हैं

वे केवल चुभना जानते हैं

सिर्फ़ टूटना जानते हैं

सर्दी में रजाई से बड़ा

कोई हमसफ़र नहीं

इसके अंदर सोए रहते हैं

सैकड़ों सूर्य

कपास के जंगल

रूइयों के पहाड़

इसमें धूप-सी मिठास

आग-सी सुगबुगाहट होती है

इसमें लिपटे होते हैं

धुनिया के पसीने

धुनकी की ताँत की बेशुमार झनक

चरख़े चलाती औरतों के सूतदार गीत

पिता नहीं हैं आज

साथ में हैं केवल

भेड़ के बालों से मुलायम गरम उनके विचार

आज भी मैं क्यों नहीं ख़रीद सकता हूँ

पिता की जीवन भर की अतृप्त इच्छा

बेटे के सुलगते तलवे जैसा भविष्य

बोरसी भर आग की गरमाहट

सिर्फ़ ढाई सेर रूई की रजाई!

स्रोत :
  • पुस्तक : बुरे समय में नींद (पृष्ठ 113)
  • रचनाकार : रामाज्ञा शशिधर
  • प्रकाशन : अंतिका प्रकाशन
  • संस्करण : 2012

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