अल मित्र ने फिर बोलना शुरू किया, और सवाल किया, और विवाह क्या है, स्वामी?
उसने उत्तर में कहना शुरू किया :
तुम एकसाथ पैदा हुए, और एकसाथ ही सदा रहोगे।
तुम तब भी एकसाथ ही रहोगे जब मृत्यु के सफ़ेद डैने तुम्हारे समय को तितर-बितर
कर देंगे।
हाँ, ईश्वर की शांत स्मृति में भी तुम एकसाथ ही रहोगे।
लेकिन तुम्हारे इस साथ के बीच-बीच में खुली जगहें भी अवश्य होंगी।
और स्वर्ग के पवन तुम्हारे बीच नृत्य करेंगे।
प्रेम करो एक दूसरे से, लेकिन उससे उसे बाँधना नहीं,
उसे अपनी आत्माओं के दो किनारों के बीच समुद्र की तरह बहने दो।
एक-दूसरे का प्याला भर दो, लेकिन दोनों एक ही प्याले से पीना नहीं।
एक-दूसरे को अपनी रोटी तो देना लेकिन एक ही रोटी को खाना नहीं।
एकसाथ गाना और नाचना, और ख़ुशियाँ भी मनाना लेकिन दूसरे को अकेले भी रहने
देना।
जैसे सितार के सभी तार अलग-अलग होते हैं, फिर भी एक ही राग में बजते हैं।
अपना हृदय दूसरे को दो लेकिन गिरवी की तरह नहीं, कारण, जीवन का हाथ ही
हृदय को नियंत्रित करता है। एक-दूसरे के साथ खड़े होओ, लेकिन सटकर नहीं, कारण,
मंदिर के खंभे अलग-अलग हो खड़े होते हैं।
और सरो और बलूत के पेड़ एकसाथ रहकर पनपते नहीं।
- पुस्तक : मसीहा
- रचनाकार : ख़लील जिब्रान
- प्रकाशन : राजपाल एंड संस
- संस्करण : 2016
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.