विस्थापन
visthapan
शहर बदल गया था
दुकानें, घर, पूल, रेल की पटरियाँ,
छत पर लगा एंटीना
इन सबके रंग, आकार और जगहें भी बदल गई थीं
जहाँ एक झोपड़ी का टूटा छप्पर
खेत की मेड़ पर चुप पड़ा रहता था—
जो बहुत ज़ोर की हवाओं में भी वापस
उसी जगह आ जाता था
फिर से झोपड़ी की तस्दीक में
अब वहाँ नहीं है
वहाँ एक पक्की सड़क बन गई है
खेत के सीने पर चढ़ाई करती—एन.एच सतहत्तर
जिससे होकर एक से दूसरे शहर के लिए प्रस्थान किया जाता है
शहर बदल गया था
गाँव से हुई तब्दीली में एक बार और
तबादला हुआ था उसका
इस तरह तबादलों ने उसे
उसके रंग-रूप, आकार-प्रकार और स्थान में
कई बार परिवर्तित कर
उसका रूपांतरण किसी मॉडर्न शहर में कर दिया था
शहर के उस मकान में
कोई खिड़की नहीं दिखती अब
कोई परिंदा भी नहीं है वहाँ
पहले तो कबूतर, गौरैया, गिलहरी और मैंनें का
खेल देर तक चलता रहता था।
वहाँ; उसके छज्जे पर
लाइट जला करती है दिन में भी
सूरज के अस्तित्व को झूठा करार करती
हवाओं को मौन घोषित करती
ए.सी. से टपकता पानी
जो नीचे चलते लोगों के सर पर एक ‘वार्न’ की तरह है कि
इस शहर में मौसम नहीं है
सूरज और चाँद—
हर्फ़ों, काग़ज़ों और संग्रहालयों में रखे मोम की स्टेचू में ढल गए हैं
इन्हें लोग ऐनक लगाकर देखते हैं और
इंद्रधनुष को शीशे में क़ैद करते
अब बहुरंगी चश्में से शहर को देखने लगे हैं
शहर बदल गया है
वाकई शहर के पास सूरज, चाँद, हवा और परिंदें नहीं हैं
नकली लाइट में शहर के इस
रंग-रूप को देखना
एक प्रकीर्णन का प्रादुर्भाव है
और इस नई खोज में
कई रंग टूट गए हैं/कई बिखर गए हैं
कुछ तो खो गए हैं और उजड़ी बस्ती की तरह
बंदरगाह की तलाश में हैं
सचमुच शहर बदल गया है
और शहर बदलने के साथ ही
सुना है;
मौसम ने अपना विस्थापन
किसी टेक्नो-डिवाइस में कर लिया है।
- रचनाकार : प्रेमा झा
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.