Font by Mehr Nastaliq Web

विसर्ग होइत स्वर

visarg hoit svar

प्रणव नार्मदेय

अन्य

अन्य

प्रणव नार्मदेय

विसर्ग होइत स्वर

प्रणव नार्मदेय

और अधिकप्रणव नार्मदेय

    ओना त'

    सेनुर छिटकबैत भोरसँ

    झामर होइत अन्हरिया राति धरि

    खपओने रहैत छथि अपनाकेँ

    सभक खगता पूर करैत

    सौंसे घर-परिवार, पाबनि-तिहार, रीति-रेबाज

    अंगेजने रहैत छथि

    जेना एकसर हुनके टेकने

    बाँचल रहि जायत

    कुल-धर्मक मान मरजाद

    हुनके

    सिनेहक गढ़गर घोरल माटिसँ

    नीपल-छछारल आँगन-घरक

    एकहक कोनमे

    मिज्झर भेल देखा पड़ती सदिखन

    बिखमसँ बिखम परिस्थितिमे

    करैत छथि निमाह

    एकहक सर-सम्बन्धकेँ

    बनबैत छथि जीवन्त

    जेना एकटा मूल स्वर करैत अछि पूर्ण

    वर्णमालाक एकहक स्वर व्यंजनकेँ

    मुदा

    जखन बेर अबैछ

    हुनक अस्तित्वक पहिचानक

    त' अनेरे अबडेरि देल जाइत रहली कात

    जेना होथि अयोगवाह

    आ...आब त'

    उमेरक एहि अवसानमे

    सहजे बहटारल सेहो जा रहलथि

    एन-मेन विसर्ग जकाँ

    कुल-भाषाक मूल स्वर।

    स्रोत :
    • पुस्तक : विसर्ग होइत स्वर (पृष्ठ 20)
    • रचनाकार : प्रणव नार्मदेय
    • प्रकाशन : नवारम्भ, पटना
    • संस्करण : 2017

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY