अभी-अभी अनाथ हुआ है
एक दुधमुँहा
तेज़ रफ़्तार कार के हादसे में
टीवी स्क्रीन पर
मन भीग भी नहीं पाता है
कि ललचाने आ जाती है
फ़र्राटा नई
पाँच सेकंड में, शून्य से सौ के दावे के साथ
इसके पहले कि
अँधकार महसूस करें
तेज़ाब से झुलसे अँधे जीवन का
सुपर रिन की चमकार से
चुंधियाँ जाती हैं आँखें
चाकचौबंद मीडिया के चलते
देर नहीं लगती
उदासी को उदासीनता में बदलते
सूचनाओं के इस चाँदमारी काल में
सूख रहे कुँओं पर भारी पड़ता है
लबालब और लकदक
बाथटबों का आकर्षण
बढ़ती जनसंख्या के खतरों पर ठहरें
कि आश्वस्ति थमा जाता है
आई पिल का विज्ञापन
'कुछ भी करें, ठहरेगा नहीं गर्भ'
पलक झपकते
यह जा...वह जा..
हो जाने वाली ख़बरें
और रेस में भागते विज्ञापनों का
तेज़ एनैस्थिसिया
धीरे-धीरे सुला रहा है
भावनाओं को हमारी
चैनलों के लिए
यह चिंता की बात नहीं
वैश्विक चुनौतियाँ हैं उनके सामने
बड़ी-बड़ी
वे उगाने में जुटे हैं ख़बरें
चमकदार और कलफ़दार
जिनके पीछे छुप जाएँ
समय के अँधेरे
वे गा रहे हैं विकास की महाआरतियाँ
आकाओं के प्रशस्तिगान
वे बदल रहे हैं हमें
सूचनासंपन्न उपभोक्ता में
अब हम खड़े हैं
अपनी कम होती मनुष्यता के साथ
अभी-अभी लॉच हुए
एस ट्वेंटी अल्ट्रा की लाइन में।
- रचनाकार : दीप्ति कुशवाह
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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