Font by Mehr Nastaliq Web

विधि-विधान

vidhi vidhan

अनुवाद : सत्यकाम विद्यालंकार

ख़लील जिब्रान

अन्य

अन्य

ख़लील जिब्रान

विधि-विधान

ख़लील जिब्रान

और अधिकख़लील जिब्रान

     

    तब एक वकील ने विधि-विधान के स्वरूप के संबंध में प्रश्न किया।

    अलमुस्तफ़ा ने कहा :

    तुम विधान बनाने में आनंद लेते हो लेकिन उसे तोड़ने में तुम्हें और भी अधिक
    आनंद आता है।

    उसी तरह, जैसे समुद्र-तट पर खेलते बालक बड़ी लगन से बालू के घरौंदे बनाते हैं
    और दूसरे क्षण पैर की ठोकरों से तोड़ने के बाद करताली बजाकर नाच उठते हैं।

    परंतु जब तुम समुद्र-तट पर बालू के मकान बनाते हो तो समुद्र की लहरें तुम्हारे
    लिए रेत ढोकर लाती हैं। और जब तुम अपनी चंचलता से उन मकानों को गिरा देते हो, तो
    समुद्र तुम्हारे उल्लास में अपना हास मिला देता है।

    समुद्र सदा निश्छल आत्मा के साथ हँसता है।

    लेकिन उन लोगों के संबंध में क्या कहा जाए जिनके लिए जीवन समुद्र के समान नहीं,
    और जो मानव-कृत विधानों को रेत के घरौंदे नहीं मानते?

    और जो जीवन को चट्टान और विधान को पैनी छैनी मानते हैं, जिसकी सहायता से वे
    जीवन-शिला पर अपनी ही मूर्ति अंकित करते हैं?

    उनकी स्थिति उस पंगु जैसी है जो नृत्य-नायिका के प्रति द्वेष-भाव से देखते हैं।

    और उस कोल्हू के बैल को क्या कहें जो अपने जूए को वरदान समझकर, वनविहारी
    मृगों को निरुद्देश्य पर्यटक समझता है?

    और उस बूढ़े अजगर को क्या कहें जो अपनी केंचुली उतारने में भी असमर्थ होकर
    दूसरे समर्थ जीवों पर अशालीनता का आरोप करता है?

    और उन मेहमानों को क्या कहें, जो सम्मिलित भोजों में सबसे पूर्व आते हैं और भूख
    से भी अधिक खाकर लौटते हुए आरोप करते जाते हैं कि सब भोजों में क़ानून की अवज्ञा
    होती है और भोज देने वाले विधान के शत्रु हैं?

    उनके संबंध में यही कहा जा सकता है कि वे भी सूर्य के प्रकाश में खड़े हैं, लेकिन
    सूर्य की ओर पीठ करके।

    वे न केवल अपनी छाया देखते हैं और उस छाया को ही विधान मानते हैं।

    —बल्कि वे सूर्य को छाया का निर्माता मात्र ही समझते हैं।

    क़ानून की पाबंदी ज़मीन पर आपादमस्तक झुककर अपनी ही छाया का अनुसरण करना
    ही तो है।

    लेकिन तुम जब सूर्य की ओर मुख करके चलते हो, तो क्या तुम्हारी छाया तुम्हें पकड़
    सकती है?

    जब तुम हवा के पंखों पर उड़ते हो, तो भला कौन-सा दिग्दर्शक यंत्र तुम्हारा
    पथप्रदर्शन करेगा?

    मानव-विधान तुम्हारे हाथों को अपनी पराधीनता की शृंखला तोड़ने में तब तक
    बाधक नहीं बनेंगे जब तक कि शृंखला तुम किसी के कारागृह के द्वार पर जाकर ही नहीं
    तोड़ो।

    विधान का भय तुम्हारे नृत्य में बाधक नहीं बनेगा, यह तुम्हारे पैर किसी दूसरे घर के दरवाज़े
    पर आघात न करेंगे।

    कौन है जो तुम्हें सज़ा दे सके, अगर तुम बाग़ी होकर जन पथ पर रुकावट न डालो?

    आर्फ़लीज के निवासियो! तुम अपने नगाड़ों को वस्त्रों से लपेटकर उसकी ध्वनि दबा
    सकते हो, वीणा की तारों को ढीला करके उसकी स्वर लहरियों को शांत कर सकते हो, पर
    कोयल को आकाश में कूकने से नहीं रोक सकते।

                                                   
    स्रोत :
    • पुस्तक : मसीहा
    • रचनाकार : ख़लील जिब्रान
    • प्रकाशन : राजपाल एंड संस
    • संस्करण : 2016

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY