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विदाई

vidai

बलराम कांवट

और अधिकबलराम कांवट

    खेतों और छतों के ऊपर

    आकाश में

    नन्हीं आँख-सा चमक रहा है

    आखातीज का चाँद

    चाँद के नीचे

    ग्राम्य देवता के चबूतरे पर

    नीम के फूलों की महक छा रही है

    सामने पगडंडी पर

    रंग-बिरंगी लूगड़ियाँ ओढ़े स्त्रियाँ

    झिलमिल गीत गाती रही हैं चाक पूजने

    कंधों पर रोशनियाँ लादे युवक

    साथ चल रहे हैं

    इन्हीं के बीच

    कोई है जो चल रही है आहिस्ता पाँव धरते

    जो अपनी धरती से बिछड़कर

    दूर जाने वाली है

    अब यहीं रह जाएँगे

    उसकी छाँव में पले माड़ के फूल

    उसकी याद में रोते मोर और हिरणों के झुंड

    देवता जो उसका पुरखा था

    अब यहीं छूटने वाला है

    आँखों में भरकर

    खाने खेलने के दिन

    वह बसने जा रही है ऐसे पराये देस

    जहाँ शायद ही दिखेगा उसे

    वैशाख का चाँद

    शायद ही मिलेंगे

    कहीं नीम के पेड़!

    स्रोत :
    • रचनाकार : बलराम कांवट
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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