Font by Mehr Nastaliq Web

वे चीजे़ं कितनी सुंदर हैं

ve chijen kitni sundar hain

राजेश सकलानी

अन्य

अन्य

राजेश सकलानी

वे चीजे़ं कितनी सुंदर हैं

राजेश सकलानी

और अधिकराजेश सकलानी

    वे चीज़ें कितनी सुंदर हैं जो अँधेरे से

    बँधी हुई हैं

    धूप में चाँदी की तरह चमकता दिन या चाँद

    असंख्य छाहों में बेसुध धरती

    या नाक की छाँह में तैरता युवती का चेहरा

    घरों में कोने वाली जगहें

    बच्चों की साँसों में गुदगुदाती झाड़ियों

    की झुरमुट, सिर छिपाए

    किताब की ओट या

    बटुए की तहों में नन्हा-सा घर

    पलंग के चीने जहाँ चीजे़ं गिर कर

    बिखर जाती हैं और बिना चूमे

    वापिस नहीं करती

    या किताब में छाँहों के पृष्ठ जिन्हें मैं

    पलटता हूँ, दबा देता हूँ।

    या कोई भी ख़ुशी, उजाले की तरह चमकदार

    जैसे कोई निर्वस्त्र लावण्यमयी छाँह घेर कर

    बैठी हो, हिलती हो।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सुनता हूँ पानी गिरने की आवाज़ (पृष्ठ 32)
    • रचनाकार : राजेश सकलानी
    • प्रकाशन : सार्थक प्रकाशन
    • संस्करण : 2000

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY