वसंत
दुनिया में
तमाम तरह के दुःख हैं
पीड़ा है
त्रास है
मगर इन सबसे बेख़बर
वसंत आ रहा है
कि इस दुनिया के लोग
जीवन के बड़े संघर्षों में मुब्तिला हैं
तेज़ भागमभाग में
यहाँ से वहाँ
वहाँ से वहाँ
उनकी व्यस्तता मारक है
मगर वसंत है
कि मानता नहीं
आ रहा है
उसे पता है कि
ऋतुचक्र समय से चल रहा
और अब उसे आना ही है
दुनिया
उसका स्वागत नहीं करती तो न करे
वह आता है तो
बाजे-गाजे के साथ
अपनी सेना लिए हुए
अपने समृद्ध साम्राज्य का
कराते अहसास
उसके आने की सूचना
उसके आगे-आगे चलती
और जब वह आता है
तो फूलों में, कलियों में,
पेड़ों की टहनियों, पत्तों तक में;
पहाड़ों पर,
रेगिस्तान में—
उसकी विजय-दुंदभी की गूँजती महक
हमें करती है विभोर।
हमें ही नहीं
पशुओं और पक्षियों तक को!
इसलिए उसे परवाह नहीं
कि कोई उसे
निमंत्रण देता या नहीं।
वह इसे समझता है अपना अधिकार
आता है बड़ी शान से
बहुत थोड़े समय के लिए
और फिर जाता है तो उसी
महाराजा की शान से!
- पुस्तक : अस्ति (पृष्ठ 429)
- रचनाकार : उद्भ्रांत
- प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हाउस
- संस्करण : 2011
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