उसे करने पर पाबंदी थी

use karne par pabandi thi

प्रदीप सैनी

प्रदीप सैनी

उसे करने पर पाबंदी थी

प्रदीप सैनी

और अधिकप्रदीप सैनी

    राह चलती लड़कियों को छेड़ना फ़ैशन में था

    और यह मर्द बनने के क्रम में

    अनिवार्य शर्त की तरह लागू था

    सरेआम लूटा जा सकता था किसी को

    जलाया जा सकता था किसी का घर

    गालियाँ बिखरी रहती थीं नंगी सड़कों पर

    पान की पीकों और बीड़ी के टोटों से ज़्यादा

    खुलेआम किया जा सकता था पेशाब

    अपहरण, हत्या और बलात्कार

    प्रेम इन सब गुनाहों से बहुत ऊपर की चीज़ था

    उसे करने पर पाबंदी थी

    पाबंदियों में सूराख़ करना ही एक रास्ता था

    प्रेम करने के लिए सिर्फ़ प्रेमी होना काफ़ी था

    तिकड़मी होना एक अतिरिक्त योग्यता थी

    प्रेम होने भर से संभव नहीं होता था प्रेम

    उसे अपने घटित होने में तिकड़म का साथ चाहिए होता था

    अपनी कहानी का प्रेमी

    अपने दोस्त की कहानी में

    डाकिया, चौकीदार या लड़की का धर्म का भाई

    कुछ भी हो सकता था

    अपनी कहानी की प्रेमिका

    अपनी सहेली की कहानी में

    इतनी धार्मिक लड़की हो सकती थी

    जो उसे साथ लिए बिना किसी भी

    पूजा, जगराता या भंडारा में जाती हो

    या इतनी डरपोक कि किसी-किसी रात घर में अकेले होने पर

    अपनी सहेली को अपने घर रोक लेती हो

    तो कुल मिलाकर तिकड़म का बोलबाला प्रेम से ज़्यादा था

    ऐसे ही किसी तिकड़म से प्रेम के दो पल जीने वे दोनों

    चोर दरवाज़ों से चोर ठिकानों तक चोरों की तरह पहुँचे थे

    उन्होंने कुछ नहीं चुराया वहाँ से

    लोगों की नज़रों से बचने को वे पहले ही जल्दी में थे

    हड़बड़ी में लिए गए चुंबन भी उनसे वहीं छूट गए

    वे प्रेमी थे चोर नहीं

    लेकिन उनके प्रेम की चोरी पकड़ी गई

    लोग थे कि अपराधियों से पहले प्रेमियों को

    ढूँढ़-ढूँढ़कर ठिकाने लगाते थे

    जबकि उनसे बचने को उन्होंने सबसे पहले

    अपने प्रेमपत्रों को जलाया और मिटाए

    काया से एक दूसरे के स्पर्श और ज़ुबान से

    एक नाम की स्मृति

    लेकिन वे बेदाग़ बच निकलने में नाकाम रहे

    उनकी आँखों में चमकते प्रेम ने उनका भेद खोल दिया

    सबूत मिटाने में वे माहिर नहीं थे

    वे प्रेमी थे हत्यारे नहीं

    लेकिन उनकी हत्या के लिए उनका प्रेमी होना काफ़ी था

    एक दिन आबादी से दूर पड़ी मिली उनकी लाश

    प्रेम सब गुनाहों से बहुत ऊपर की चीज़ था

    उसे करने पर पाबंदी थी।

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रदीप सैनी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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