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जियौ बहादुर खद्दरदारी

jiyau bahadur khaddardari

रफ़ीक़ शादानी

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रफ़ीक़ शादानी

जियौ बहादुर खद्दरदारी

रफ़ीक़ शादानी

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    महँगाई बेकारी

    नफरत कय फइली बीमारी

    दुखी अहय जनता बेचारी

    बिकी जात बा लोटा थारी!

    जियौ बहादुर खद्दरधारी!

    सूखा या सैलाब जो आवय

    तोहरा बेटवा खुसी मनावय

    घरवाली आँगन मा गावय

    मंगल भवन अमंगलहारी!

    जियौ बहादुर खद्दरधारी!

    धूमिल भय गाँधी कय खादी

    पहिरय लागे अवसरवादी

    या तौ पहिरयँ बड़े फसादी

    देस का लूटौ बारी-बारी!

    जियौ बहादुर खद्दरधारी!

    मनमानी हरहाल करत हौ

    देसवा का कंगाल करत हौ

    खुद का मालामाल करत हौ

    तोहरेन दम से चोर बजारी!

    जियौ बहादुर खद्दरधारी!

    झंडय –झंडा रंग-बिरंगा

    नगर-नगर मा कर्फ्यू दंगा

    खुसहाली मा पड़ा अडंगा

    हम भूखा तुम खाव सोहारी!

    जियौ बहादुर खद्दरधारी!

    तन कय गोरा मन कय गन्दा

    मस्जिद-मन्दिर नाम पै चन्दा

    सबसे बढ़िया तोहरा धंधा

    तौ नमाजी तौ पुजारी!

    जियौ बहादुर खद्दरधारी!

    बरखा मा विद्यालय ढहिगा

    वही के नीचे टीचर रहिगा

    नहर के खुलतय दुइ पुल बहिगा

    तोहरेन पूत कय ठेकेदारी!

    जियौ बहादुर खद्दरधारी!

    स्रोत :
    • पुस्तक : जियौ बहादुर खद्दरधारी (पृष्ठ 109)
    • संपादक : अटल तिवारी, अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी
    • रचनाकार : रफ़ीक़ शादानी
    • प्रकाशन : परिकल्पना, दिल्ली
    • संस्करण : 2025

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